Sunday, January 23, 2011

बत्तीस साल पहले विद्रोही

जो लोग विद्रोही जी को केवल एक कवी के रूप में जानते हैं मैं उन्हें विद्रोही की एक दूसरी झलक दिखाना चाहता हूँ ...जब वे एक क्रन्तिकारी छात्र नेता के रूप में सक्रीय थे / आज से ठीक ३२ साल पहले की बात है/ २३जनवरी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिन था वर्ष १९७९ ...../मैं kni सुल्तानपुर में BA का छात्र था और विद्रोही जी LLB के छात्र थे .../उसी रोज सुबह -सुबह कालेज में छात्र आन्दोलन भड़क उठा ... मैंने नेतृत्व अपने हाथ में संभाला ...ल्ल्ब के छात्रों ने एक जुट होकर मेरा साथ दिया ...कालेज में बालबा हो हो गया और छात्र बेलफेयर के इंचार्ज बरिष्ठ प्राध्यापक श्री शुक्ल की छात्रों ने पिटाई कर दी .../

बारह बजे कचेहरी के सामने सुल्तानपुर नगर पालिका में हमारी पार्टी CPIM की तरफ से महगाई और बेरोजगारी तथा सबको सामान सिक्षा का अवसर दिए जाने को लेकर एक धरना था .../ मैं SFI का जिला संजोजक और पार्टी की सिटी ब्रांच का सचिव था लिहाजा मुझे भाषण भी देना था और उसके थोड़ी देर बाद वनारस के लिए रवाना होना था साथ में विद्रोही जी को लेकर / उस समय तक विद्रोही पार्टी के उम्मीदवार सदस्य और पार्टी के सभी फ्रंट पर काम किया करते थे ....विद्रोही बहुत उम्दा भाषण भी करते थे और कवितायेँ तो वे बहुत जोशीले अंदाज़ में सुनाया करते थे ...जब उनकी कविता चल रही होती थी तब सड़कों पर चलने वाले लोग ठहर कर तब तक सनते जबतक विद्रोही की कविता ख़त्म न हो जाय/

२४ जनवरी को वनारस के बेनिया वाले बाग़ में किसान सभा का राष्ट्रीय सम्मलेन था / उस सम्मलेन के लिए विद्रोही और मुझे वालेंटियर बनाया गया था...सभा वगैरह ख़तम करके जल्दी-जल्दी हम दोनों रेलवे स्टेसन पहुंचे ....sfi के बहुत सरे सदस्य हम दोनों को स्टेसन पर छोड़ने आये थे / विद्रोही जी मैं बहुत खुश थे पहली बार सुल्तानपुर से बाहर और राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी मिली थी .....गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे तभी कुछ लड़के हमारे पास आए...और धीरे से मुझसे कहा की शायद आप को कालेज से निष्काषित कर दिया गया है ...हम लोग अभी सीधा कालेज से ही आ रहे हैं वहां पर यह चर्चा बहुत जोरों पर है / मैंने कहा कोई बात नहीं जो होगा देखा जायेगा अब तो वनारस से लौट कर ही इस बारे में सोचा जायेगा /

तभी ट्रेन आयी और हम दोनों उसमे जाकर बैठ गए /मैंने अपने निकले जाने की खबर विद्रोही को नहीं दी इसलिए भी की वह खबर झूठी भी हो सकती थी / बहरहाल हम लोग वनारस में पहुंचकर ..क्या भूमिका निभानी है उसको लेकर बहुत उत्सुक थे ...सबसे पहले हमें दशाश्मेश घाट पार्टी कार्यालय पहुंचकर अपनी पार्टी के लोकसभा सदस्य कामरेड सत्य नारायण सिंह से मिलकर अपनी जिम्मेदारी लेनी थी / रात हो चुकी थी जब हम लोग वनारस पहुंचे ...कामरेड सत्य नारायण ने कहा अभी तो जाकर पोस्टर लगाइए फिर चार बजे भोर में बतओंगा की आप लोगों को कल से क्या करना है / मैंने निकलते-निकलते कामरेड से कहा की हम दोनों को केरल के कामरेडों के डेलिगेट्स के साथ कर दीजियेगा ///कहते हुए पोस्टर लगाने निकल पड़े /

रात भर पोस्टर लगाकर उस सर्द रात में सुबह होने के करीब था तब हम पार्टी कार्यालय पहुंचे तो कहा गया की हमें केरल वाले कामरेडों की सेवा के लिए वालेंटियर बनाया गया है / हम लोग उस धर्मशाले के लिए रिक्शे से रवाना हो गए ..../ धरम्शाले तक पहुंचे ही थे की एक साथी ने बताया केरल वाली ट्रेन स्टेसन पहुँच चुकी है ...बहार खड़े होकर इंतज़ार करने लगे तब तक डेलिगेट्स आना शुरू हो गए ....डेलिगेट्स की सेवा में मैं और विद्रोही समझिये एक पाँव पर खड़े रहे ...रात गुजर गई एक मिनट के लिए सोने को नहीं मिला /

सम्मलेन का पहला सत्र जब दो बजे के करीब ख़तम हुआ तो मुझे और विद्रोही को भी बेनियावाला बाग़ यानी सम्मलेन स्थल पर खाने के लिए और अगले सत्तर को थोड़ी देर तक देखने के लिए बुलवाया गया / जैसे ही मैं वहां पहुंचा कामरेड प्रताप कुमार टंडन ने मुझे आवाज दिया ...वहीँ पर कामरेड शंकर दयाल तिवारी भी खड़े थे मैंने लाल सलाम किया और बातें करने लगा तभी वहां पर मेरे बड़े भाई कामरेड स्टालिन एडवोकेट मेरे पास पहुंचकर धीरे से बोले KNI से तुम्हारे लिए ये टेलीग्राम आया है / मैंने टेलीग्राम को खोलकर पढ़ा तो तो वह मेरा इक्स्पल्सन लेटर था बहरहाल मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ा .मैं कामरेड विद्रोही को ढूँढने लगा ..वह खाना खा रहे थे ...मैंने भी खाना खाया और एक घंटे तक सम्मलेन को देखा मेरे गाँव के जो लोग वहां आये थे उन्हें भी खाना खिलाया और फिर हम और विद्रोही वापस अपनी डिउटी पर धर्मशाला चले गए /

धर्मशाला तो बिलकुल खलीता सब सम्मलेन में थे हम लोगों ने सोचा थोडा सो लेते हैं ...लेकिन मुझसे रहा नहीं गया मैंने विद्रोही जी को वह टेलीग्राम दिखा दिया ...विद्रोही ने कहा हम लोग क्रन्तिकारी हैं हमें डिग्री की परवाह नहीं हमें तो पूरी सत्ता चाहिए कहने लगे कामरेड घबराने की कोई बात नहीं है एक क्रन्तिकारी व्यक्ति के जीवन में यह बहुत छोटी घटना है ...सुल्तानपुर वापस लौटकर मनेजमेंट का दिमाग ठीक कर दिया जायेगा /

.वैसे तो बहुत लम्बी कहानी है जब मेरे रिअद्मिसन के लिए आन्दोलन बहुत तेज हो गया तो KNI के संस्थापक जो मेरे पिता जी के बहुत अछे दोस्त थे उनहोंने मेरे अब्बा से कहा और फिर मुझे भी बुलाकर कहा की अगर तुम यहाँ पड़ोगे तो कालेज नहीं चल सकता ...मेरे अब्बा ने कहा आप लोग आन्दोलन ख़त्म कर दीजिये ....तब तक मार्च का महीना आ गया ...अप्रैल का महीना शुरू होते ही मैंने jnu जाने का निर्णय कर लिया ....

जिस दिन मैं JNU के लिए सुल्तानपुर से निकल रहा था रस्ते में विद्रोही जी का एक छोटा कमरा था ...मैंने सोचा विद्रोही इ से मुलाकात करता चलूँ अब पता नहीं कब वापस आऊंगा / विद्रोही जी ने कहा असरार मैं भी आप के साथ jnu चलूँगा ...मैं विद्रोही जी को मन नहीं कर पाया ...और मेरे पास बहुत ज्यादा पैसे भी नहीं थे उन दिनों दिल्लिका किराया २८.५० (साढ़े अट्ठाईस) रूपया लगता था ...मैंने कहा विद्रोही जी मेरे पास जितना पैसा है वह तो टिकट में ही ख़तम हो जायेगा फिर jnu में क्या खायेंगे कोई रास्ता सुझाइए क्या किया जाय /

विद्रोही ने कहा चलिए बिना टिकट चलते हैं ..जो होगा देखा जायेगा ...और हम लोग गंगा यमुना पर बिना टिकट चढ़ लिए / आखिर घज़ाबाद में में मजिस्ट्रेट चेकिंग हुई और हम दोनों पकडे गए / मैंने टी टी को बहुत समझाया .कहा की हम लोग मजबूरी में बिना टिकट चल दिए हमें माफ़ कर दीजिये ...उसने कहा हम तो माफ़ कर देते लेकिन ये मजिस्ट्रेट चेकिंग है.../ अंततः उसी टी टी ने हमें बचाया / इस तरह हम दोनों JNU पहुंचे और घनश्याम मिश्रा के कमरे में काफी दिनों तक रहे ..फिर मेरा दाखला हो गया ...लेकिन विद्रोही जी का दाखला उस साल नहीं हो पाया ...ऐसे क्रन्तिकारी हैं अपने विद्रोही जी /