Friday, December 31, 2010

JNU - मई आन्दोलन 1983












Saturday, December 25, 2010

वाम एकता : समय की मांग ; असरार खान

हमारा देश भ्रष्टाचारों की दलदल में इस तरह से धंसा जा रहा है की आम जनता अब इस व्यवस्था का विकल्प ढूँढने पर विवश हो रही है .सच पुछा जय तो अब उसे अगर किसी राजनीतिक पार्टी से कुछ उम्मीद बची है तो वह केवल लेफ्ट पार्टियाँ ही हैं और अगर लेफ्ट पार्टियाँ समय की इस मांग को समय रहते महसूस नहीं कर सकीं तो उनकी बहुत बड़ी भूल साबित होगी ..हालाँकि ख़ुशी की बात यह है की पिछले दिनों जब नेहाहायत सादे और स्वक्च छवि वाले समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन जी का इंतकाल हुआ और उनको श्रधांजलि देने के लिए देश के नेता और विद्वान वी पी हॉउस के स्पीकर हॉल में इकठ्ठा हुए तो वहां समाजवादियों और लेफ्ट की एकता के बारे में बात उठी और माकपा के सीताराम यचूरी और भाकपा के नेता वर्धन ने इस दिशा में वक्तव्यों के जरिये पहल की लेकिन सवाल पैदा होता है की अगर यह वक्ताव्यीय पहल महज मौके की नजाकत को देखते हुए फार्मेल्टी में हुआ है तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है .

हाँ एक बात जरूर है की समाजवादियों में जितना अधिक विखराव हो चूका है और कई बार सत्ता में उनके रहने के बाद जिस तरह उनका पतन हो चूका है उसके अधर पर देखा जय तो उनसे सचमुच कोई बड़ी उम्मीद करना व्यर्थ होगा लेकिन लेफ्ट ने अपने सम्मान और अपने सिद्धांतों की रक्षा किसी हद तक की है इसलिए उम्मीद भी उन्हीं से की जा सकती है साथ ही यह भी उम्मीद की जा सकती है की समाजवादी नेताओं का भले ही पतन हो गया हो लेकिन उसके समर्थकों का पतन नहीं हुआ है जो किसी नए आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं .

लेफ्ट से ज्यादा उम्मीद इसलिए है की उसके समर्थक पूरे देश में हर जगह मिल सकते हैं और देखा गया है की वेकिसी न किसी रूप में किसी न किसी फ्रोंत के जरिये एक्टिव भी हैं चाहे टीचिंग के मैदान में हों या एन जी ओ अथवा लेखन और पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण फील्ड में हों , फिल्मों में भी इनकी उपस्थिति कम नहीं है मुझे तो कभी कभी ऐस्सा लगता है की सांस्कृतिक मंच और ट्रेड युनिअनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है बस उन्हें सामान के साथ इकठ्ठा करने की जरूरत है उनके अनुभओं को भी सुनने और देश की जो नै दिशा हो उसपर उनके विचारों को बिना किसी टीका-टिप्पड़ी के एक बार तो सुनना ही पड़ेगा तभी देश में लेफ्ट आन्दोलन को निर्णायक दिशा में मोड़ा जा सकता है /

वाम एकता और सभी कमुनिस्ट पार्टियों के विलय पर भी बीच-बीच में कोशिशें होती रही हैं केंव्की किसी भी लेफ्ट समर्थक अथवा धुर लेफ्टिस्ट को यह बात अच्छी नहीं लगती की मौलिक रूप से तो सभी कमुनिस्ट पार्टियाँ मार्क्सवादी-लेनिनवादी तथा माओ की महान उपलव्धियों से सहमत हैं फिर भी आखिर कौन सी समस्या है जो अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग की नीति पर चलती जा रही हैं / मुझे यह सौभाग्य प्राप्त है की १९९६ में मैंने भाकपा (माले) और माकपा और भाकपा के बड़े नेताओं से कमुनिस्ट एकता के बारे में जनसत्ता अख़बार के जरिये बहस को अंजाम दिया . माकपा के सीताराम यचूरी और माले के कामरेड विनोद मिश्र ने इस बहस में बड़ी गंभीर दिलचस्पी दिखाई /

जो बहस चली थी उसकी कुछ पेपर कटिंग आप लोगों की सेवा में जस का तस पेश कर रहा हूँ /




Tuesday, December 21, 2010

मुस्लिम वोटों की भूखी कांग्रेस- निशाना हिन्दू संगठनों पर

कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम वोटों के लिए इतना परेशान पहले कभी नहीं देखा गया ..लोग कह रहे हैं की उसका पेट मुस्लिम वोट जब से उसके हाथ से निकला तब से उसको सत्ता में आने के लिए छोटे-छोटे लोगों से बड़ी-बड़ी कीमत पर समझौते करने पड़ रहे हैं ..इसलिए उसकी रातों की नीद और दिन चैन दोनों खो गया है !बहरहाल यहाँ यह बात ज्यादा गौरतलब है कि अगर कांग्रेस को मुसलमानों का वोट चाहिए तो वह भाजपा और आर एस एस पर आखिर क्यों हमला कर रही है? शायद कांग्रेस ने राजनीती को बहुत ज्यादा आसान समझ लिया है और वह सोच रही है कि उसके भाजपा या हिन्दू संगठनों के खिलाफ बोलने से मुस्लमान उसको अपना सबसे बड़ा हितैसी समझ लेगा और फिर से इनकी गोद में जा बैठेगा .

कांग्रेस कि इस नादानी पर बड़ी हंसी छूटती है ...अगर इस तुक्के में कोई जान होती तो बिहार में कांग्रेस को जरूर कुछ फल मिला होता ....फिर भी बेचारे दिग्विजय सिंह लगे हुए हैं दिन -रात बस एक ही काम पर...दिग्गी राजा के सहायक के तौर पर उन्हें बीच-बीच में राहुल गाँधी और चिदम्बरम भी मदद करते रहते हैं लेकिन फिर भी मुस्लमान अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा है ...बल्कि और बेडा गर्क होता जा रहा है बिहार में तो लगभग यह पार्टी ख़तम ही हो गई लगती है . .....

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के स्वाभाविक दावेदार मुलायम सिंह हैं तो बचे -खुचे वोटों पर बसपा हाथ मार देती रही है . इसको एक संयोग ही कहा जायेगा कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्त्तर प्रदेश से जो २० सीटें कांग्रेस को मिल गयी थीं वह मुलायम सिंह के आत्मघाती फैसले कि वजह से और मायावती कि मनमानी और अहंकारी तरीके से टिकट बंटवारे कि वजह से...लेकिन अब ये दोनों नेता शायद ही वैसी गलती दुबारा करें . कांग्रेसी इस बात से भी बहुत चिंतित हैं कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर ठीक उसी तरह हक जताने वाली पीस पार्टी का उदय हो रहा है जैसे कभी बसपा ने दलितों से कहा था कि अब तुम्हें किसी और पार्टी को वोट देने कि जरूरत नहीं पड़ेगी अब तुम्हारी अपनी पार्टी बन गई है ...

बसपा के संस्थापक कांशीराम १९८५ से लेकर आखिरी साँस तक यही बोलते रहे और बसपा को इसका बहुत बड़ा फायदा मिला..उत्त्तर प्रदेश के कुछ उपचुनाव में पीस पार्टी ने जिस तरह कांग्रेस को पाचवीं पोजीसन में पहुंचा दिया और खुद दुसरे नंबर पर आ रही है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में पीस पार्टी सपा,बसपा किसी से भी सौदेबाज़ी कर सकती है ..हमारा ऐसा ख्याल है कि मुसलमानों को भाजपा का भय दिखाकर अब कोई पार्टी उसका वोट नहीं ले सकती लेकिन कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं है इसलिए वह सोचती है बोलते रहो भाजपा और आर एस एस के खिलाफ हो सकता है कि लह ही जाय .

यह बात भी बहुत दिलचस्प है कि विकीलीक्स के जरिये भारत के हिन्दू संगठनों के बारे में राहुल गाँधी का जो विचार प्रचारित किया जा रहा है कि उनहोंने अमेरिकी राजदूत से कहा कि ये लस्करे तोइबा से भी ज्यादा खतरनाक है .कांग्रेस ने सोचा था कि इसपर भी बखेड़ा खड़ा हो जायेगा और मुस्लमान कांग्रेस को अपना आका मन लेगा ..लेकिन पूरे देश में ऐसा कहीं कुछ नहीं दिखा ...बहुत से लोग तो विकीलीक्स को लीक करने के पीछे अमेरिका का ही हाथ मन रहे हैं और यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि इसमें भारत कि कांग्रेस पार्टी भी शामिल है...जो भी हो आज-कल देश कि सारी ही जनता क्या मुस्लिम क्या हिन्दू -सिख-इसाई कोई भी कांग्रेस कि बात को सुन ही नहीं रही है बल्कि वह देखने में विश्वास करने के सिधांत पर चल पड़ी है ...

मुसलमानों में एक सुब्गुबाहट जरूर है वह भी इस बात को लेकर कि कांग्रेस खुद आज जब पावर में है तो फिर रंगनाथ मिश्र आयोग कि सिफारिशों पर अमल करते हुए मुसलमानों को १० % आरक्षण केनव नहीं दे देती और सच्चर कमिटी कि सिफारिसों को ईमानदारी से केंव नहीं लागू करती.? ज्ञात रहे कि सच्चर कमिटी और मिश्र आयोग ने मुसलमानों के बारे में यहाँ तक कह दिया है कि इनकी हालत दलितों से भी बदतर है चाहे शिक्षा कि बात हो या आर्थिक पहलू हो ...इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी अगर दायें .बाएं देख रही है और अभी तक कोई सकारात्मक कदम मुसलमानों कि तरक्की के लिए नहीं उठाया है तो इसलिए कि कहीं उससे हिन्दू नाराज न हो जाएँ ...और मुस्लिम सबल न हो जाएँ...बड़ा कोफ़्त होता है यह देखकर कि वोट कि राजनीति के लिए राजनीतिक पार्टियाँ कितना नीचे गिर सकती हैं कमाल है ..


-असरार खान -

Saturday, October 16, 2010

कांग्रेस पार्टी और एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में क्या फर्क है?..

जो राजनीतिक पार्टियाँ चुनाओं में आम जनता के बीच जाकर उच्च आदर्शों और नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं और आम आदमी के हक की बातें करती हैं सत्ता में आने के बाद वे किस तरह से अपने कहे हुए के खिलाफ आचरण करने लगती हैं अब यह बात आम हो चुकी है ...

सबसे लम्बे समय तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी जो गाँधी-जवाहर और लाल बहादुर शास्त्री की बातें करते थकती नहीं उसके सन्दर्भ में मै कुछ मौलिक सवाल पूछना चाहता हूँ .सोनिया गाँधी पूरे देश में घूम-घूम कर कह रही हैं कि उनकी सर्कार स्वर्गीय राजीव गाँधी के सपनों को साकार कर रही है ...क्या राजीव गाँधी का सपना यही था की हर रोज़ गरीबी अमीरी की खाई चौड़ी होती जाये जैसा कि आज के आकडे बता रहे हैं .दूसरी बात यह की भुखमरी और कुपोषन में भारत दो कदम और ऊपर निकल जाये यहाँ तक की पाकिस्तान से भी खराब रैंकिंग में आ जाय?

किसानों के बारे में तरह-तरह के दावे बिलकुल गलत साबित हो रहे हैं .पिचले दस सालों में लगभग एक लाख किसानों ने आत्महत्या किया है इसके लिए किसकी नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं? जरा सोचिये .शिक्षा का अधिकार कानून लाया गया है लेकिन गरीबों और लाचारों के बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं और जो जा भी रहे हैं वो क्या पढ़ रहे हैं उसे भगवान् ही जानता है .वैसे भी देश में अंग्रेज़ी शिक्षा का महत्व इतना बढ़ गया है कि हिंदी तथा राज्य स्तरीय भाषाओँ की कोई कीमत ही नहीं रह गयी है ..सबको मालूम है की इंग्लिश माध्यम की पढ़ाई से ही नौकरियाँ मिल रही हैं और उस पर केवल अमीरों का आधिपत्य है ....आखिर कैसे इस देश को आगे ले जाने के बारे में कांग्रेस पार्टी सोच रही है....

स्वास्थ के मामले में हम इतना पीछे रह गए हैं की ग्रामीण इलाकों में गंभीर बीमारी होने पर मरीज़ रस्ते में ही दम तोड़ देता है ...हमारी सरकार मेडिकल कॉलेज खोलने की जगह कामनवेल्थ का गेम शायद इस लिए कराती है की इसके जरिये कुछ पूंजीपति और नेता एवं अधिकारी मालामाल हो जायं ...

स्वास्थ मंत्री के मुताविक केवल शहरों में ५.५ लाख डाक्टरों की कमी है गावों की बात तो भूल ही जाइए . जिस देश की ८०% जनता गावों में रहती हो वहाँ तीन घंटा भी गारंटी के साथ बिजली नहीं मिल रही है खेती तो आयल इंजन के भरोसे हो रही है . यहाँ तक की बड़े-बड़े कस्बों और राजधानी के निम्न आय वाले इलाकों में बिजली राम भरोसे ही रहती है. और हमारा कार्पोरेट जो सरकार के आशीर्वाद से मुनाफे का रिकॉर्ड कायम कर रहा है वह डे नाईट क्रिकेट मैच कराता है कहने वाले कह सकते हैं की अरे यार क्या छोटी-छोटी बात कर रहे हो इसमें कितना बिजली खर्च हो जाती है.. लेकिन मैं उस सोच की बात कर रहा हूँ जो दूसरों को अँधेरे में रख कर रंगरलियाँ मनाने का माहौल बनाया जा रहा है..

देश को आगे ले जाने वालो में एक ज़ज्बा होना चाहिए जो अन्याय को बिलकुल भी बर्दास्त ना करे. क्या ऐसी बेचैनी कभी देखा आप ने इन कांग्रेस्सियों में? हैरत की बात है इतने गरीब देश में ख़ास कर राजधानी दिल्ली में लाखो लोग बेघर हैं वहां सोनिया जी और राहुल गाँधी अलग-अलग बड़ी-बड़ी आलिशान कोठियों में रहते हैं बाकी आप खुद ही अनुमान लगा लीजिये के इनकी सुरक्षा पर कितना खर्च होता होगा...

अब आइये कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र की बात करें... राहुल गाँधी घूम घूम कर कह रहे हैं कि वे पार्टी के अन्दर डेमोक्रेसी ला रहे हैं उनसे कोई पूछे कि भाई आप को माँ की अध्यक्छता वाली पार्टी ने डायरेक्ट पार्टी का महासचिव बना दिया .क्या कांग्रेस पार्टी में आज तक किसी और को इस तरह इतना बड़ा पद दिया गया है केवल राजीव गाँधी को छोड़ कर .शायद यही कारण है की दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टुडेंट्स यूनियन के चुनाव में राहुल गाँधी की बातों पर स्टुडेंट्स ने ध्यान नहीं दिआ और एन एस यू आई आई बुरी तरह चुनाव हार गयी. जबकि राहुल उसके इंचार्ज हैं?

बिना किस्सी प्रभाव के राहुल गाँधी कांग्रेस पार्टी के बादशाह बनकर घूम रहे हैं .पढ़ा-लिखा तबका और नई उम्र के लोग कांग्रेस पार्टी से नफरत करने लगे हैं, लोग मान चुके हैं कि यह पार्टी वंशवाद कों भी पीछे छोड़ते हुए भारत में एक राजवंश स्थापित कर रही है जो लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है .

Sunday, October 3, 2010

झूठी शान

-असरार खान-

पनी झूठी शान दिखाने के लिए हमारी सरकार किस तरह उतावली है. यह देख कर भी अगर देश की जनता को अपनी सरकार और राजसत्ता के बारे में भ्रम बना रहता है तो फिर भगवान् भी उसका भला नहीं कर सकता . कामनवेल्थ गेम के नाम पर देश की जनता की गाडी कमाई को पानी की तरह बहाया जा रहा है .भ्रस्टाचार का भी इतना बेशर्म चेहरा देशवासियों ने कभी नहीं देखा था.

कौन नहीं जानता की असली भारत गावों में बसता है और उसके जीवन अस्तर में दिनों-दिन गिरावट आ रही है .उसके बाल-बच्चे उच्च शिक्षा के अवसरों से लगातार दूर होते जा रहे हैं .इस खेल के बाद महगाई और तेजी से बढेगी यानी की रुरल-अर्बन के बीच की खाई और गहरी हो जायेगी . इस खेल के बाद खुद डेल्ही कई निम्न और आभिजात्य भागों में बंट जायेगी .

हमारे स्वास्थ मिनिस्टर ने पिछले दिनों राज्यसभा में खुद यह स्वीकार किया था की देश के केवल शहरी इलाकों में ५.५ लाख डॉक्टरों की कमी है जिसे अगले ५५ साल में शायद पूरा किया जा सके गाव की बात तो दिमाग से ही निकल दीजिये .लगभग १००० करोड़ रुपये की लगत से जवाहर लाल नेहरु स्तादियम की मरम्मत कराइ गयी है जरा सोचिये इतने धन से क्या खेल गाँव के बगल में एक नया स्टेडियम नहीं बनाया जा सकता था.?.. और उसका नाम कोम्मोंवेअल्थ स्टेडियम रखा जाता न की नेहरु-नेहरु गाँधी-गाँधी यानी की जिन शब्दों को सुनते-सुनते अब आम आदमी को नफरत सी होने लगी है उससे निजात भी मिल जाता....... और ओह जगह भी सुन्दर थी लेकिन तब शायद इतना बड़ी लूट ना हो पाती

बहरहाल मैं तो शिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ की हमारे देश को उन्नति के रास्ते पर ले जाने की कोई कोशिश ही नहीं हो रही है बल्कि देश को अमीर-गरीब, शहर और गाँव में बांटने की साजिस हो रही है .दिल से ये बात निकल रही है रोक नहीं पा रहा हूँ की गाँधी जी ने देश की आज़ादी के समय क्रन्तिकारी खून में मीठे ज़हर की सूई लगा दिया और भारत उन्हीं अन्ग्रेज्परास्तों के हात की कठपुतली बन कर रह गया. अहिंसा और सुधारवाद की थेवरी से कोई देश समूचे देशवासियों के साथ इन्साफ नहीं कर सकता जैस्सा की परिडाम आज आप के सामने है कमसे कम एक बार तो भारत को रेडिकल चेंज की जरूरत थी .

देश के अन्दर दस साल में लगभग एक लाख किसानो ने आत्महत्या कर लिया और हमारी सरकारें साइनिंग इण्डिया का नारा लगाती रहीं.... है न कितना अजीब बात यह ?..ना स्कूलों में मास्टर हैं और नं अस्पताल हैं ना सड़कें हैं गाँव वालों को बिजली ही नहीं मिल रही है. ग्रामवासियों को कर्ज नहीं मिलता ये सब क्या गिनाऊ. आप लोग खुद मुझसे ज्यादा ही जानते हैं लेकिन आदत से मजबूर हूँ लिखने लगता हूँ माफ़ कीजियेगा ..इन दिनों आप राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी का भी चेहरा नहीं देख रहे होंगे जैसे गेम खतम होगा ये किस निर्लज्जता से आम आदमी की बात करना शुरू कर देंगे. यह अगले चंद दिनों में देखिएगा ,

तमाम आरोपों के बावजूद कलमाड़ी को हटाने की हिम्मत नहीं हो सकी कारण साफ़ है लूट में इनके लोग भी शामिल हैं चुनाओं में सबसे ज्यादा कालेधन का स्तेमाल कौन पार्टी करती है यह भी किसी से छुपा नहीं है ...खेलों में जहां चार मेडल हमने जीता उसी का ढिंढोरा पीता जाएगा यह तो सबको मालूम ही है उसके बाद पिचली सारी बातें दब जायेंगी, यही तो है राज करने का तरीका ...

कोई यह नहीं सोचे की हमें खेलों में रूचि नहीं है ..हम भी खेल को बहुत पसंद करते हैं लेकिन ये खेल अभी भारत में होने लायक नहीं थे हमारे यहाँ करोणों लोग भीख मांगते हैं देश पर बहुत बड़ा विदेशी कर्ज है ..सच ये है की हम एक बहुत ही गरीब और बैकवर्ड देश हैं लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं ...पर- कैपिटा इनकम और ग्रोथ रेट दिखा कर दुनिया के सामने तो आप डींग हांक सकते हैं लेकिन देश की हालत पर ग़ालिब की यह पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं....

''मुझको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है ''.

Saturday, October 2, 2010

Monday, September 13, 2010

Articles on JNU


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Attack on Sc/St and OBC in JNU



















Saturday, September 11, 2010

Viddrohi my friend


JNU campus mein hi nahi internet aur desh videsh mein bhi Aaj-kak viddrohi ji ki charcha badi joron par hai. jis tarah Viddrohi ji aaj kal charchaon mein hai mujhe kabhi-kbhi aissa lagta hai shayad issi tarah kabhi Unan mein sukrat bhi charchaon mein rahe honge.........1983 mein jo log jnu mein the unehen kuch batane ki jaroorat nahin hai Lekin uske baad ke log viddrohi ji ke baare mein bahut kam jante hain.....Bahut se log soch rahe hain ki ye viddrohi ji hain kaun jo na to jnu ke student hain aur hi Dr. Namver singh ki tarah koi mash..hoor Alochak...fir ye itna charchaon mein akhir kenv hai?Darasal viddrohi ji ek aisse krantikari hain jo kisi krantikari party mein nahin hain..isliye unnehen ek swatantra krantikari kaha jay to galat nahin hoga.....Lekin iske saath hi main ye bhi kahna chahta hoon ki Hamare desh mein agar krantikari Andolan sahi disha mein aage badha hota to viddrohi jaissa yogya aur pratibhavaan vyakti swatantra krantikari hargij nahota.....................mere yah baat kuch logon ko kadvee lag sakti hai Lekin aisse logon se main yah nahin kahna chahta ki mujhe maaf keejiyega.......Aaj to pridam sabke samne hai jo log viddrohi ji ko peeche chodhkar bahut aage nikal jaane ki firak mein the oh log kahaan hain? Kahin nahin hain baal-bacchhon ko hi paal-pos rahe hain ...Campus se bahar nikalte hi LaL jhande ko jeb mein rakh lene wallon ke pass iska koi uttar nahin hai...sach poocha jay to yah communist Andolan ki khamee thie...kenvki communist party bhi ussi ko aage badhana chahti thie jo dil bahlane ke liye ya khanapoorti krne ke liye Rajneeti bhi kar le aur Apne nijee future ke liye vibhinn cheton ke mathadheeson ke haath-paanv dabane ki kala mein mahir bhi bhi ho. ...mere nazar mein viddrohi ji un tammam logon se bahut jyada keemti vyakti hain jo log na to com. Lenin aur Stalin ban paye aur na hi Gorkey aur Premchand......Tata virla to khair inhen ban..na hi nahin thaa.....Fir likhoonga viddrohi par jaldi hi....Sabbr hai to jaroor intzaar keejiye kuch tathyatmak baatein hi karoonga .......

Friday, September 10, 2010

Viddrohi my friend


Yah to bahut dukh ki baat hai . Viddrohi ji campus ko kya nuksha pahunch rahe the.

JNU Authoritiese se mera anurodh hai ki unhen campus mein rahne diya jay . unke pass jeevan mein ab hai hi kya ? campus ko oh kya nuksha n pahuncha sakte hain . sab kuch to jnu ne unka aaj se 27 saal pahle hi cheen liya jub 1983 mein unhen married hostel ke roon no. 20 se evict kar diya gaya aur 26 april ko jub oh Fast un to death par baithe to tatkaleen vc Prof. PN Srivastava ne 8 may ki raat unhen jail bhijwa diya. AIIMS tak unke saath theek aadhi raat ko police mujhe bhi giraftar karke le gayee thie . lekin baad mein mujhe 4 baje raat ko vasant vihaar police station se chod diya . Mujhe Vasant vihar ke SHO ne bataya valki oh kagaj ka tukda bhi dikhaya jis par VC ne ham donon ko Terorrist likh kar diya tha . lekin us samay ke JNUSU ne viddrohi ji ke liye kuch nahin kiya . SFI to hamare sabse jyada virodh mein thie. Main halanki iske liye kisi ko dosh nahin dena chahta valki galti hamari aur viddrohi ji ki hi thie jo ham dono jnu ko chod kar Rajneeti ke maidaan mein nahin koode . Kavi hirday hone ke naate viddrohi ji kat..tey gaye Ek mahan jan..Neta ban..ne ka Avsar ganwa diye.

Mittron viddrohi ji ko main hi Sultan pur se 1979 mein lekar aaya tha. Tab viddrohi ji KNI se LLB kar rahe the aur 2nd year ke chaatr the. Literature ke teen visyon English,hindi sanskrit mein graduation karne walle iss prativaan student ko MA poora nahin karne diya gaya. kahne ke liye jnu mein bahut bade-bade janvaadi aur leftist tatha social democrats un dino hua karte the lekin koi ek ratti bhar ka sahyog nahin kiya . kuch sachhaiyan aissi hain jinhen likhna abhi shayad uchit na ho par itna samajhiye ki unke room par lagaye gaye authoritese ke tale ko todne ka arop jub mere woopar laga aur mujhe show cause notice mili to jnusu ne ek farzee mamla khada karke Jalees Ahmad ka tala tod diya . Antatah 11 may ko sabhi log jail chale gaye aur university next academic year ke liye band kar di gayee . ye hai uss samay ke jnusu ka asli chehra.

Unke wahan rahne par Authoritiese ko aapatti kenw hai . oh jnu ko kya nukshan pahuncha rahe hain? JNU koi bharat sarkar ka khufiya karyalay to hai nahin. pade-likhe logon ki jagah hai .Ek university hai. wahan kewal chattr hi to nahin rahte residencial uni. hai . bude bacchhe karmchari sabhi rahte hain. Ham koi kanooni adhikar ki baat nahin kar rahe hain . Ek vyakti jiska wahin par sab kuch kho gaya hai aur usse kuch aissa hashil karne ki tammanna bhi nahin hai jiss..se desh ki naak kat jaye keval jnu ke mahaul mein rah kar jeene ki khushi hai to kya jnu ka prasashan aur jnu ke student Naitikta ke aadhar par viddrohi ji ko wahan rahne nahin de sakte?