Friday, December 31, 2010

JNU - मई आन्दोलन 1983












Saturday, December 25, 2010

वाम एकता : समय की मांग ; असरार खान

हमारा देश भ्रष्टाचारों की दलदल में इस तरह से धंसा जा रहा है की आम जनता अब इस व्यवस्था का विकल्प ढूँढने पर विवश हो रही है .सच पुछा जय तो अब उसे अगर किसी राजनीतिक पार्टी से कुछ उम्मीद बची है तो वह केवल लेफ्ट पार्टियाँ ही हैं और अगर लेफ्ट पार्टियाँ समय की इस मांग को समय रहते महसूस नहीं कर सकीं तो उनकी बहुत बड़ी भूल साबित होगी ..हालाँकि ख़ुशी की बात यह है की पिछले दिनों जब नेहाहायत सादे और स्वक्च छवि वाले समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन जी का इंतकाल हुआ और उनको श्रधांजलि देने के लिए देश के नेता और विद्वान वी पी हॉउस के स्पीकर हॉल में इकठ्ठा हुए तो वहां समाजवादियों और लेफ्ट की एकता के बारे में बात उठी और माकपा के सीताराम यचूरी और भाकपा के नेता वर्धन ने इस दिशा में वक्तव्यों के जरिये पहल की लेकिन सवाल पैदा होता है की अगर यह वक्ताव्यीय पहल महज मौके की नजाकत को देखते हुए फार्मेल्टी में हुआ है तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है .

हाँ एक बात जरूर है की समाजवादियों में जितना अधिक विखराव हो चूका है और कई बार सत्ता में उनके रहने के बाद जिस तरह उनका पतन हो चूका है उसके अधर पर देखा जय तो उनसे सचमुच कोई बड़ी उम्मीद करना व्यर्थ होगा लेकिन लेफ्ट ने अपने सम्मान और अपने सिद्धांतों की रक्षा किसी हद तक की है इसलिए उम्मीद भी उन्हीं से की जा सकती है साथ ही यह भी उम्मीद की जा सकती है की समाजवादी नेताओं का भले ही पतन हो गया हो लेकिन उसके समर्थकों का पतन नहीं हुआ है जो किसी नए आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं .

लेफ्ट से ज्यादा उम्मीद इसलिए है की उसके समर्थक पूरे देश में हर जगह मिल सकते हैं और देखा गया है की वेकिसी न किसी रूप में किसी न किसी फ्रोंत के जरिये एक्टिव भी हैं चाहे टीचिंग के मैदान में हों या एन जी ओ अथवा लेखन और पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण फील्ड में हों , फिल्मों में भी इनकी उपस्थिति कम नहीं है मुझे तो कभी कभी ऐस्सा लगता है की सांस्कृतिक मंच और ट्रेड युनिअनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है बस उन्हें सामान के साथ इकठ्ठा करने की जरूरत है उनके अनुभओं को भी सुनने और देश की जो नै दिशा हो उसपर उनके विचारों को बिना किसी टीका-टिप्पड़ी के एक बार तो सुनना ही पड़ेगा तभी देश में लेफ्ट आन्दोलन को निर्णायक दिशा में मोड़ा जा सकता है /

वाम एकता और सभी कमुनिस्ट पार्टियों के विलय पर भी बीच-बीच में कोशिशें होती रही हैं केंव्की किसी भी लेफ्ट समर्थक अथवा धुर लेफ्टिस्ट को यह बात अच्छी नहीं लगती की मौलिक रूप से तो सभी कमुनिस्ट पार्टियाँ मार्क्सवादी-लेनिनवादी तथा माओ की महान उपलव्धियों से सहमत हैं फिर भी आखिर कौन सी समस्या है जो अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग की नीति पर चलती जा रही हैं / मुझे यह सौभाग्य प्राप्त है की १९९६ में मैंने भाकपा (माले) और माकपा और भाकपा के बड़े नेताओं से कमुनिस्ट एकता के बारे में जनसत्ता अख़बार के जरिये बहस को अंजाम दिया . माकपा के सीताराम यचूरी और माले के कामरेड विनोद मिश्र ने इस बहस में बड़ी गंभीर दिलचस्पी दिखाई /

जो बहस चली थी उसकी कुछ पेपर कटिंग आप लोगों की सेवा में जस का तस पेश कर रहा हूँ /




Tuesday, December 21, 2010

मुस्लिम वोटों की भूखी कांग्रेस- निशाना हिन्दू संगठनों पर

कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम वोटों के लिए इतना परेशान पहले कभी नहीं देखा गया ..लोग कह रहे हैं की उसका पेट मुस्लिम वोट जब से उसके हाथ से निकला तब से उसको सत्ता में आने के लिए छोटे-छोटे लोगों से बड़ी-बड़ी कीमत पर समझौते करने पड़ रहे हैं ..इसलिए उसकी रातों की नीद और दिन चैन दोनों खो गया है !बहरहाल यहाँ यह बात ज्यादा गौरतलब है कि अगर कांग्रेस को मुसलमानों का वोट चाहिए तो वह भाजपा और आर एस एस पर आखिर क्यों हमला कर रही है? शायद कांग्रेस ने राजनीती को बहुत ज्यादा आसान समझ लिया है और वह सोच रही है कि उसके भाजपा या हिन्दू संगठनों के खिलाफ बोलने से मुस्लमान उसको अपना सबसे बड़ा हितैसी समझ लेगा और फिर से इनकी गोद में जा बैठेगा .

कांग्रेस कि इस नादानी पर बड़ी हंसी छूटती है ...अगर इस तुक्के में कोई जान होती तो बिहार में कांग्रेस को जरूर कुछ फल मिला होता ....फिर भी बेचारे दिग्विजय सिंह लगे हुए हैं दिन -रात बस एक ही काम पर...दिग्गी राजा के सहायक के तौर पर उन्हें बीच-बीच में राहुल गाँधी और चिदम्बरम भी मदद करते रहते हैं लेकिन फिर भी मुस्लमान अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा है ...बल्कि और बेडा गर्क होता जा रहा है बिहार में तो लगभग यह पार्टी ख़तम ही हो गई लगती है . .....

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के स्वाभाविक दावेदार मुलायम सिंह हैं तो बचे -खुचे वोटों पर बसपा हाथ मार देती रही है . इसको एक संयोग ही कहा जायेगा कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्त्तर प्रदेश से जो २० सीटें कांग्रेस को मिल गयी थीं वह मुलायम सिंह के आत्मघाती फैसले कि वजह से और मायावती कि मनमानी और अहंकारी तरीके से टिकट बंटवारे कि वजह से...लेकिन अब ये दोनों नेता शायद ही वैसी गलती दुबारा करें . कांग्रेसी इस बात से भी बहुत चिंतित हैं कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर ठीक उसी तरह हक जताने वाली पीस पार्टी का उदय हो रहा है जैसे कभी बसपा ने दलितों से कहा था कि अब तुम्हें किसी और पार्टी को वोट देने कि जरूरत नहीं पड़ेगी अब तुम्हारी अपनी पार्टी बन गई है ...

बसपा के संस्थापक कांशीराम १९८५ से लेकर आखिरी साँस तक यही बोलते रहे और बसपा को इसका बहुत बड़ा फायदा मिला..उत्त्तर प्रदेश के कुछ उपचुनाव में पीस पार्टी ने जिस तरह कांग्रेस को पाचवीं पोजीसन में पहुंचा दिया और खुद दुसरे नंबर पर आ रही है उसे देखते हुए तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में पीस पार्टी सपा,बसपा किसी से भी सौदेबाज़ी कर सकती है ..हमारा ऐसा ख्याल है कि मुसलमानों को भाजपा का भय दिखाकर अब कोई पार्टी उसका वोट नहीं ले सकती लेकिन कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं है इसलिए वह सोचती है बोलते रहो भाजपा और आर एस एस के खिलाफ हो सकता है कि लह ही जाय .

यह बात भी बहुत दिलचस्प है कि विकीलीक्स के जरिये भारत के हिन्दू संगठनों के बारे में राहुल गाँधी का जो विचार प्रचारित किया जा रहा है कि उनहोंने अमेरिकी राजदूत से कहा कि ये लस्करे तोइबा से भी ज्यादा खतरनाक है .कांग्रेस ने सोचा था कि इसपर भी बखेड़ा खड़ा हो जायेगा और मुस्लमान कांग्रेस को अपना आका मन लेगा ..लेकिन पूरे देश में ऐसा कहीं कुछ नहीं दिखा ...बहुत से लोग तो विकीलीक्स को लीक करने के पीछे अमेरिका का ही हाथ मन रहे हैं और यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि इसमें भारत कि कांग्रेस पार्टी भी शामिल है...जो भी हो आज-कल देश कि सारी ही जनता क्या मुस्लिम क्या हिन्दू -सिख-इसाई कोई भी कांग्रेस कि बात को सुन ही नहीं रही है बल्कि वह देखने में विश्वास करने के सिधांत पर चल पड़ी है ...

मुसलमानों में एक सुब्गुबाहट जरूर है वह भी इस बात को लेकर कि कांग्रेस खुद आज जब पावर में है तो फिर रंगनाथ मिश्र आयोग कि सिफारिशों पर अमल करते हुए मुसलमानों को १० % आरक्षण केनव नहीं दे देती और सच्चर कमिटी कि सिफारिसों को ईमानदारी से केंव नहीं लागू करती.? ज्ञात रहे कि सच्चर कमिटी और मिश्र आयोग ने मुसलमानों के बारे में यहाँ तक कह दिया है कि इनकी हालत दलितों से भी बदतर है चाहे शिक्षा कि बात हो या आर्थिक पहलू हो ...इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी अगर दायें .बाएं देख रही है और अभी तक कोई सकारात्मक कदम मुसलमानों कि तरक्की के लिए नहीं उठाया है तो इसलिए कि कहीं उससे हिन्दू नाराज न हो जाएँ ...और मुस्लिम सबल न हो जाएँ...बड़ा कोफ़्त होता है यह देखकर कि वोट कि राजनीति के लिए राजनीतिक पार्टियाँ कितना नीचे गिर सकती हैं कमाल है ..


-असरार खान -