Sunday, October 3, 2010

झूठी शान

-असरार खान-

पनी झूठी शान दिखाने के लिए हमारी सरकार किस तरह उतावली है. यह देख कर भी अगर देश की जनता को अपनी सरकार और राजसत्ता के बारे में भ्रम बना रहता है तो फिर भगवान् भी उसका भला नहीं कर सकता . कामनवेल्थ गेम के नाम पर देश की जनता की गाडी कमाई को पानी की तरह बहाया जा रहा है .भ्रस्टाचार का भी इतना बेशर्म चेहरा देशवासियों ने कभी नहीं देखा था.

कौन नहीं जानता की असली भारत गावों में बसता है और उसके जीवन अस्तर में दिनों-दिन गिरावट आ रही है .उसके बाल-बच्चे उच्च शिक्षा के अवसरों से लगातार दूर होते जा रहे हैं .इस खेल के बाद महगाई और तेजी से बढेगी यानी की रुरल-अर्बन के बीच की खाई और गहरी हो जायेगी . इस खेल के बाद खुद डेल्ही कई निम्न और आभिजात्य भागों में बंट जायेगी .

हमारे स्वास्थ मिनिस्टर ने पिछले दिनों राज्यसभा में खुद यह स्वीकार किया था की देश के केवल शहरी इलाकों में ५.५ लाख डॉक्टरों की कमी है जिसे अगले ५५ साल में शायद पूरा किया जा सके गाव की बात तो दिमाग से ही निकल दीजिये .लगभग १००० करोड़ रुपये की लगत से जवाहर लाल नेहरु स्तादियम की मरम्मत कराइ गयी है जरा सोचिये इतने धन से क्या खेल गाँव के बगल में एक नया स्टेडियम नहीं बनाया जा सकता था.?.. और उसका नाम कोम्मोंवेअल्थ स्टेडियम रखा जाता न की नेहरु-नेहरु गाँधी-गाँधी यानी की जिन शब्दों को सुनते-सुनते अब आम आदमी को नफरत सी होने लगी है उससे निजात भी मिल जाता....... और ओह जगह भी सुन्दर थी लेकिन तब शायद इतना बड़ी लूट ना हो पाती

बहरहाल मैं तो शिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ की हमारे देश को उन्नति के रास्ते पर ले जाने की कोई कोशिश ही नहीं हो रही है बल्कि देश को अमीर-गरीब, शहर और गाँव में बांटने की साजिस हो रही है .दिल से ये बात निकल रही है रोक नहीं पा रहा हूँ की गाँधी जी ने देश की आज़ादी के समय क्रन्तिकारी खून में मीठे ज़हर की सूई लगा दिया और भारत उन्हीं अन्ग्रेज्परास्तों के हात की कठपुतली बन कर रह गया. अहिंसा और सुधारवाद की थेवरी से कोई देश समूचे देशवासियों के साथ इन्साफ नहीं कर सकता जैस्सा की परिडाम आज आप के सामने है कमसे कम एक बार तो भारत को रेडिकल चेंज की जरूरत थी .

देश के अन्दर दस साल में लगभग एक लाख किसानो ने आत्महत्या कर लिया और हमारी सरकारें साइनिंग इण्डिया का नारा लगाती रहीं.... है न कितना अजीब बात यह ?..ना स्कूलों में मास्टर हैं और नं अस्पताल हैं ना सड़कें हैं गाँव वालों को बिजली ही नहीं मिल रही है. ग्रामवासियों को कर्ज नहीं मिलता ये सब क्या गिनाऊ. आप लोग खुद मुझसे ज्यादा ही जानते हैं लेकिन आदत से मजबूर हूँ लिखने लगता हूँ माफ़ कीजियेगा ..इन दिनों आप राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी का भी चेहरा नहीं देख रहे होंगे जैसे गेम खतम होगा ये किस निर्लज्जता से आम आदमी की बात करना शुरू कर देंगे. यह अगले चंद दिनों में देखिएगा ,

तमाम आरोपों के बावजूद कलमाड़ी को हटाने की हिम्मत नहीं हो सकी कारण साफ़ है लूट में इनके लोग भी शामिल हैं चुनाओं में सबसे ज्यादा कालेधन का स्तेमाल कौन पार्टी करती है यह भी किसी से छुपा नहीं है ...खेलों में जहां चार मेडल हमने जीता उसी का ढिंढोरा पीता जाएगा यह तो सबको मालूम ही है उसके बाद पिचली सारी बातें दब जायेंगी, यही तो है राज करने का तरीका ...

कोई यह नहीं सोचे की हमें खेलों में रूचि नहीं है ..हम भी खेल को बहुत पसंद करते हैं लेकिन ये खेल अभी भारत में होने लायक नहीं थे हमारे यहाँ करोणों लोग भीख मांगते हैं देश पर बहुत बड़ा विदेशी कर्ज है ..सच ये है की हम एक बहुत ही गरीब और बैकवर्ड देश हैं लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं ...पर- कैपिटा इनकम और ग्रोथ रेट दिखा कर दुनिया के सामने तो आप डींग हांक सकते हैं लेकिन देश की हालत पर ग़ालिब की यह पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं....

''मुझको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है ''.

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